Wednesday, July 4, 2012

anand.


मौत तू एक कविता है
मुझसे एक कविता का वादा है, मिलेगी मुझको 

डूबती नब्जों में  जब दर्द को नींद आने लगे
ज़र्द सा चेहरा लिए चाँद उफ़क तक पहुँचे
दिन अभी पानी में हो, रात किनारे के करीब
न अँधेरा हो, न उजाला हो
न आधी रात, न दिन
जिस्म जब ख़त्म हो और रूह को सांस आए 

मुझसे एक कविता का वादा है, मिलेगी मुझको..
पिछले वर्षों में डॉक्टर किसी भी मरीज़ व उसके परिवार के लिए एक मित्र, दार्शनिक और मार्गदर्शक हुआ करता था. वह उनकी मनोवैज्ञानिक चिंताओं और विषयों की ठीक उसी तरह देखभाल करता था जिस प्रकार शारीरिक लक्षणों और चिन्हों की देखभाल करते हैं. परन्तु पिछले कुछ वर्षों में चिकित्सा ने एक नया आयाम ले लिया है, जिसके कारण अनेक रोगों के निदान में आश्चर्यजनक सफलता मिली है. परन्तु इसने डॉक्टरों और चिकित्सकीय समुदाय को एक अनावश्यक दर्प और अहम् की भावना से भर दिया है. हम यह विश्वास करने लगे हैं कि हमारे भीतर किसी को जीवन देने की क्षमता है. हम स्वयं को ईश्वर मानने लगे हैं.
--- डॉ. वृंदा सीताराम (कैंसर पर विजय कैसे प्राप्त करें) पुस्तक से.