खिड़की के पास वाली कुर्सी पे बैठे
इन बारिश की बूँदों को देखती हूँ
तो लगता है कि ये बूँदें ही तो हैं
जो मेरे दिल का हाल समझती हैं
धरती पर गिरते ही बूँदें अपनी पहचान खो देती हैं
मिटटी में मिलके मटमैला पानी हो जाती हैं
उस मटमैले पानी में अपना अक्स तलाशती हूँ
जिसका कुछ हिस्सा तुममें था, तुमसे था
तुम्हारी आँखें, तुम्हारी हँसी, वो आवाज़
और उस आवाज़ के पीछे की ताकत और हिम्मत
जो हिम्मत देती थी मुझे जिंदगी के हर मोड़ पे
आज कहीं खो सी गई है इन बूँदों की तरह
आँखों से आँसू ना गिरे तो क्या
अंतर्मन की चीत्कार को किसी ने तो सुना
तुम्हे खोने का दर्द, तुम्हे ना देख पाने की टीस
हर इक ज़ख्म इन बूँदों की ज़ुबानी अपनी कहानी कहता है
ये बादल मेरे मनपटल पर गहराया हुआ अँधेरा ही तो हैं
और इन बादलों से संदेशा लाती हुई बूँदों को देख
लगता है कि ये बूँदें ही तो हैं
जो मेरे दिल का हाल समझती हैं